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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2678
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

अध्याय - 1

हिन्दी आलोचना के उदय की परिस्थितियाँ

 

प्रश्न- आलोचना को परिभाषित करते हुए उसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।

उत्तर -

आलोचना, समीक्षा, समालोचना आदि पर्यायवाची शब्द हैं। इन सबके द्वारा एक ही अर्थ का बोध होता है। अंग्रेजी का क्रिटिसिज्म शब्द आलोचना का समानार्थी है। आलोचना शब्द लुचू धातु से बना है। इसका अर्थ देखना है। इसीलिए आलोचना या समालोचना का अर्थ भली प्रकार 'देखना' माना गया है। समीक्षा का भी यही अर्थ है। आलोचना को भली प्रकार से देखना ही आलोचना है। आलोचना का कार्य आलोचना को भली प्रकार से देखकर उसके सम्बन्ध में अपना मत प्रस्तुत करना है। आलोच्य कृति के सम्बन्ध में निष्पक्ष भाव से निर्णय देने वाले व्यक्ति को आलोचक या समीक्षक कहते हैं।

साहित्य जीवन की व्याख्या करता है और आलोचना से साहित्य की व्याख्या होती है। आलोचक साहित्यक रचना को स्वयं समझकर उसका बोध पाठकों को कराता है। इसीलिए उसे अध्यापक या दुभाषिए की संज्ञा दी जाती है। एक अध्यापक की भांति वह कृतिकर की भावना को पाठकों के समक्ष उपस्थित करता है। यह कार्य वह आलोचना द्वारा ही करता है। इसीलिए यह कहा जाता है कि आलोचना से आलोच्य कृति को समझने में सहायता मिलती है।

पूर्वकाल में आलोचक टीका और व्याख्या लिखकर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री समझ लेता था, किन्तु आज समीक्षक का कर्त्तव्य बढ़ गया है। वर्तमान समय में ऐतिहासिक, सामाजिक प्रभावों के बीच कृति और कृतिकार को रखकर उसके संबंध में विचार करना अभीष्ट हो गया है। आज़ आलोचना के द्वारा दो प्रकार के कार्य मुख्यतः हो रहे हैं -

(1) साहित्य की कसौटी के रूप में सिद्धान्त कथन।
(2) साहित्य के गुण-दोषों का परीक्षण।

आलोचना के प्रकार - कृति और कृतिकार की समीक्षा से सम्बन्धित विविध पद्धतियों को स्वीकार कर समीक्षक आलोच्य की समीक्षा करता है। इस आधार पर समीक्षा या आलोचना के निम्नलिखित रूप प्रचलित हैं -

(1) सैद्धान्तिक समीक्षा।
(2) निर्णयात्मक समीक्षा।
(3) प्रभावाभिव्यंजक समीक्षा।
(4) व्याख्यात्मक समीक्षा।

व्याख्यात्मक समीक्षा के निम्नलिखित तीन स्वरूप मान्य हैं -

(अ) ऐतिहासिक समीक्षा
(ब) तुलनात्मक समीक्षा
(स) वन्दोन्मुखी समीक्षा
वन्दोन्मुखी समीक्षा को दो रूपों में विभाजित किया गया है -
(क) प्रगतिवादी समीक्षा और
(ख) मनोविश्लेषणवादी समीक्षा।

आलोचना के विभिन्न प्रकारों का संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है -

(1) सैद्धान्तिक समीक्षा - सैद्धान्तिक समीक्षा में साहित्य के सिद्धान्तों का विवेचन होता है। काव्यांगों जैसे - रस, छन्द, अलंकार आदि का विवेचन सैद्धान्तिक आलोचना का विषय है।

(2) निर्णयात्मक समीक्षा - सैद्धान्तिक समीक्षा द्वारा जिन शास्त्रीय सिद्धान्तों की प्रतिष्ठा होती है, उनके आधार पर आलोच्य के गुण-दोष का विवेचन निर्णयात्मक आलोचना का विषय माना गया है। निश्चित नियमों और सिद्धान्तों की कसौटी पर कृति का परीक्षण होने से निर्णयात्मक समीक्षा में निश्चयात्मक का गुण दिखाई पड़ता है, किन्तु ऐसी आलोचना में प्रगतिशीलता का सर्वथा अभाव रहता है।

(3) प्रभावाभिव्यंजक समीक्षा - इस प्रकार की आलोचना में शास्त्रीय सिद्धान्तों का आधार नहीं लिया जाता है। इसमें आलोचक की रुचि को महत्ता प्राप्त होती है। कृति का जैसा प्रभाव आलोचक के मन पर पड़ता है, उसे वह उसी रूप में अंकित कर देता है। प्रभावाभिव्यंजक समीक्षा की अपेक्षा समीक्षक के व्यक्तित्व का उद्घाटन अधिक होता है। इसीलिए प्रभावाभिव्यंजक समीक्षा को निबन्ध माना जाता है। इस प्रकार की समीक्षा की ओर अब प्रवृत्ति नहीं रह गयी है।

(4) व्याख्यात्मक समीक्षा - इसमें आलोच्य को उसकी परिस्थिति के बीच रखकर देखा जाता है और समाज के लिए उसकी उपादेयता पर विचार किया जाता है। इस प्रकार की समीक्षा प्रस्तुत करने वाला समीक्षक एक वैज्ञानिक की तरह कृति व कृतिकार का विश्लेषण करता है। इसीलिए इसमें वैज्ञानिकता अधिक पाई जाती है। इसके प्रमुख तीन रूप हैं -

(अ) ऐतिहासिक समीक्षा - फ्रांसीसी आलोचक हेन ने सर्वप्रथम ऐतिहासिक समीक्षा का लेखन किया। ऐतिहासिक समीक्षा का कर्ता कृति या कृतिकार को उसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में रखकर देखता है। आलोचक आलोच्य कृति को जब उस राजनीतिक, सामाजिक और साहित्यिक परिवेश में रखकर देखता है, जिसमें वह कृति प्रस्तुत की गई थी, तब ऐतिहासिक समीक्षा मानी जाती है।

(ब) तुलनात्मक समीक्षा - इस प्रकार की समीक्षा में तुलना की स्थिति मान्य होती है। आलोच्य की तुलना किसी अन्य से करते हुए उसके गुण-दोषों पर प्रकाश डालना तुलनामक समीक्षा का विषय है। तुलनात्मक समीक्षा में देशकाल का बन्धन टूट जाता है। एक देश के साहित्यकार की तुलना दूसरे युग के साहित्यकार से की जा सकती है। कालिदास के संबंध में समीक्षा करते समय उनकी तुलना शेक्सपीयर से करना देश की सीमा को अस्वीकृत करने पर ही संभव होता है। इसी प्रकार मीरा के साथ महादेवी की तुलना का कार्य युग की सीमा को छोड़ने पर ही संपन्न होता है। तुलनात्मक समीक्षा में आलोचक समानताओं-असमानताओं दोनों को ही प्रस्तुत करता हुआ अपना निर्णय प्रकाशित करता है।

(स) पदोन्मुखी समीक्षा - इस प्रकार की समीक्षा के दो रूप हैं -

(क) प्रगतिवादी समीक्षा इस समीक्षा को 'समाजशास्त्रीय समीक्षा' भी कहते हैं। प्रगतिवादी आलोचक यह मानता हैं कि श्रेष्ठ साहित्य में युग जीवन की दिशा को निर्दिष्ट करने की क्षमता होती है। कृति और कृतिकार ने जनता और उसकी मनोवृत्ति को परिवर्तित करने या यूँ कहिए कि प्रगतिशील बनाने में कितना योगदान किया है, इस दृष्टि से ही प्रगतिवादी आलोचक आलोच्य का मूल्यांकन करता है। प्रगतिवादी समीक्षा में स्थूल सामाजिक रूप पर ही आर्थिक दृष्टि रहती है। जीवन के सूक्ष्म स्पन्दनों को न देखना इसका दोष माना जाता है।

(ख) मनोविश्लेषणवादी समीक्षा - रचयिता के वैयक्तिक मनोविज्ञान पर विचार करते हुए मनोवैज्ञानिकों ने अंतश्चेतना को साहित्य का आधार माना है। इसी आधार की स्वीकृति देता हुआ मनोविश्लेषणवादी आलोचक रचयिता की मनःस्थिति का विश्लेषण करता है और इसी विश्लेषण प्रक्रिया से वह रचना की व्याख्या करता है। मनोविश्लेषणवादी आलोचना पद्धति के कृतिकार की मानसिक आवश्यकताओं का अध्ययन कर यह देखा जाता है कि कृति इन आवश्यकताओं की पूर्ति में किस हद तक सफल रही है।

पाश्चात्य समालोचना पद्धति, आलोचना को भिन्न प्रकार से वगीकृत करती है। इसके आधार पर आलोचना के निम्नांकित चार रूप हैं। -

(1) रूपवादी आलोचना।
(3) ऐतिहासिक आलोचना।
(2) विद्यागत आलोचना।
(4) अन्तविषयी आलोचना।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आलोचना को परिभाषित करते हुए उसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकासक्रम में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  4. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की आलोचना पद्धति का मूल्याँकन कीजिए।
  5. प्रश्न- डॉ. नगेन्द्र एवं हिन्दी आलोचना पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- नयी आलोचना या नई समीक्षा विषय पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन आलोचना पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- द्विवेदी युगीन आलोचना पद्धति का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- आलोचना के क्षेत्र में काशी नागरी प्रचारिणी सभा के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- नन्द दुलारे वाजपेयी के आलोचना ग्रन्थों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- हजारी प्रसाद द्विवेदी के आलोचना साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  12. प्रश्न- प्रारम्भिक हिन्दी आलोचना के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  13. प्रश्न- पाश्चात्य साहित्यलोचन और हिन्दी आलोचना के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
  14. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- आधुनिक काल पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  17. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उसकी प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख भर कीजिए।
  21. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के व्यक्तित्ववादी दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  22. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद कृत्रिमता से मुक्ति का आग्रही है इस पर विचार करते हुए उसकी सौन्दर्यानुभूति पर टिप्णी लिखिए।
  23. प्रश्न- स्वच्छंदतावादी काव्य कल्पना के प्राचुर्य एवं लोक कल्याण की भावना से युक्त है विचार कीजिए।
  24. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद में 'अभ्दुत तत्त्व' के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए इस कथन कि 'स्वच्छंदतावादी विचारधारा राष्ट्र प्रेम को महत्व देती है' पर अपना मत प्रकट कीजिए।
  25. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद यथार्थ जगत से पलायन का आग्रही है तथा स्वः दुःखानुभूति के वर्णन पर बल देता है, विचार कीजिए।
  26. प्रश्न- 'स्वच्छंदतावाद प्रचलित मान्यताओं के प्रति विद्रोह करते हुए आत्माभिव्यक्ति तथा प्रकृति के प्रति अनुराग के चित्रण को महत्व देता है। विचार कीजिए।
  27. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  28. प्रश्न- कार्लमार्क्स की किस रचना में मार्क्सवाद का जन्म हुआ? उनके द्वारा प्रतिपादित द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  29. प्रश्न- द्वंद्वात्मक भौतिकवाद पर एक टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद को समझाइए।
  31. प्रश्न- मार्क्स के साहित्य एवं कला सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- साहित्य समीक्षा के सन्दर्भ में मार्क्सवाद की कतिपय सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
  33. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- मनोविश्लेषणवाद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत कीजिए।
  35. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  36. प्रश्न- समकालीन समीक्षा मनोविश्लेषणवादी समीक्षा से किस प्रकार भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
  37. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  38. प्रश्न- मार्क्सवाद का साहित्य के प्रति क्या दृष्टिकण है? इसे स्पष्ट करते हुए शैली उसकी धारणाओं पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- मार्क्सवादी साहित्य के मूल्याँकन का आधार स्पष्ट करते हुए साहित्य की सामाजिक उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
  40. प्रश्न- "साहित्य सामाजिक चेतना का प्रतिफल है" इस कथन पर विचार करते हुए सर्वहारा के प्रति मार्क्सवाद की धारणा पर प्रकाश डालिए।
  41. प्रश्न- मार्क्सवाद सामाजिक यथार्थ को साहित्य का विषय बनाता है इस पर विचार करते हुए काव्य रूप के सम्बन्ध में उसकी धारणा पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- मार्क्सवादी समीक्षा पर टिप्पणी लिखिए।
  43. प्रश्न- कला एवं कलाकार की स्वतंत्रता के सम्बन्ध में मार्क्सवाद की क्या मान्यता है?
  44. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  45. प्रश्न- आधुनिक समीक्षा पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- 'समीक्षा के नये प्रतिमान' अथवा 'साहित्य के नवीन प्रतिमानों को विस्तारपूर्वक समझाइए।
  47. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  48. प्रश्न- मार्क्सवादी आलोचकों का ऐतिहासिक आलोचना के प्रति क्या दृष्टिकोण है?
  49. प्रश्न- हिन्दी में ऐतिहासिक आलोचना का आरम्भ कहाँ से हुआ?
  50. प्रश्न- आधुनिककाल में ऐतिहासिक आलोचना की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए उसके विकास क्रम को निरूपित कीजिए।
  51. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के सैद्धान्तिक दृष्टिकोण व व्यवहारिक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- शुक्लोत्तर हिन्दी आलोचना एवं स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  55. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में नन्ददुलारे बाजपेयी के योगदान का मूल्याकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  56. प्रश्न- हिन्दी आलोचक हजारी प्रसाद द्विवेदी का हिन्दी आलोचना के विकास में योगदान उनकी कृतियों के आधार पर कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. नगेन्द्र के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  58. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. रामविलास शर्मा के योगदान बताइए।

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